सीधे कश्मीर से….

Bichitramani Rathor
सीधे कश्मीर से….
1. श्रीनगर में डल झील के उस हाउस बोट में केयरटेकर ने पूछा- जनाब, आप कहां के रहने वाले हैं? मैंने कहा- बिहार का। उसने पूछा कि कभी आप ये कहते हैं कि बिहार भारत का अटूट हिस्सा है। जब नहीं कहते तो बार बार कश्मीर के लिए क्यों कहते हैं कि ये भारत का अटूट हिस्सा है। इस अटूट में ही तो टूट छुपा है।
2. पहलगाम में ऊपर वादियों की खूबसूरती देखने घोड़े से जा रहा था, तो घोड़ेवाले से पूछा कि तुम लोग भारत के साथ रहना चाहते हो या पाकिस्तान के साथ? पाकिस्तान के नाम पर वो चिढ़ गया और बोला कि उस पर तो बिल्कुल भरोसा नहीं। लेकिन हम हिंदुस्तान के साथ भी नहीं रहना चाहते। हमें आजादी चाहिए। मैंने कहा कि मान लो, तुम्हारी मुराद पूरी हो गई तो फिर पाकिस्तान तुम्हारा क्या हाल करेगा। जब भारत जैसे बड़े और शक्तिशाली देश पर तीन तीन बार हमला बोला तो कश्मीर को तो कभी भी कब्जा में करने के लिए युद्ध छेड़ देगा। फिर क्या करोगे। घोड़ेवाले ने कहा कि जनाब, हम भी तो हिंदुस्तानी ही हैं, लेकिन सेना-मिलिट्री हमें हिंदुस्तानी नहीं समझती।
3. गुलमर्ग से लौटते हुए एक कश्मीरी से पूछा- यहां सब अच्छा है तो कश्मीरी पंडितों का पलायन क्यों हुआ? उसका जवाब था- आप कश्मीरी पंडितों का घर चलकर देखिए, वो जस के तस हैं। 25 साल में टूट-फूट जरूर गए हैं। और कश्मीरी पंडितों का पलायन कुछ आतंकियों के कारण हुआ और कुछ जगमोहन के कारण, जिन्हें 1990 में जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल बनाया गया था। उस कश्मीरी का आरोप था कि जगमोहन ने कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर निकाला, उन्हें जम्मू और उसके बाहर बसाया। इसके बाद घाटी में मुसलमानों का दमन शुरु हुआ। आज कश्मीरी पंडितों के पास बाहर में नौकरी है, अच्छा खासा रोजगार है और सरकारी पेंशन भी मिलता है लेकिन हमको क्या मिलता है।
4. लाल चौक के पास एक दुकान वाले से पूछा कि पत्थरबाजी कब तक चलेगी। उसका जवाब आया कि जब तक टेलीविजन का कैमरा यहां चलेगा।
5. और आखिर में बात 60 साल के बुजुर्ग ड्राइवर की, जो 6 दिन की मेरी कश्मीर यात्रा में साथ रहा। उस बूढ़े व्यक्ति की नाराजगी नेताओं से भी थी, सरकार से भी और सेना के साथ साथ स्थानीय पुलिस से भी। फिर उसने करीब 25 साल पुरानी अपनी दास्तां सुनाई, जब उसने एक अंबेसडर कार खरीदी थी टूरिस्टों को घुमाने के लिए। एक रात उसके घर पर पारा मिलिट्री फोर्स वालों ने धावा बोला। उसको पकड़कर ले गए कि तुम्हारी कार में ड्रग्स है। कार खोला तो कुछ नहीं मिला। जिस लिबास में था, उसी में आंखों पर पट्टी बांधकर फोर्स वाले ले गए। सात दिन तक इधर-उधर रखा और आखिर में छोड़ा तो उसकी जेब में पड़े 3800 रुपये में सिर्फ 200 रुपये थे। उसने मुझसे कहा कि सर, आप सोच सकते हैं कि उस वक्त 3800 रुपये की क्या कीमत थी। हालांकि उसने ये भी कहा कि बीएसएफ के एक अधिकारी ने उससे हमदर्दी जतायी और खाने पीने के लिए भी दिया। उस बूढ़े आदमी ने मुझसे कहा कि 35 साल की उम्र में मेरे साथ जो हुआ, क्या उसके बाद भी सेना पर मेरा भरोसा बना रहता।
नोट- मैं नहीं जानता कि कश्मीर में जो कुछ मुझे लोगों से सुनने को मिला, वो सच है या नहीं, लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूं कि आप दमन से किसी को डरा सकते हैं लेकिन जोड़ नहीं सकते।

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